छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में पिता के स्थान पर अनुकंपा नियुक्ति देने को लेकर एक याचिका दायर की गई थी, याचिकाकर्ता पुत्र 12 साल बाद अपने पिता के स्थान पर नौकरी मांगने के लिए हाई कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने सुनवाई करते हुए याचिका खारिज कर दी और मामले को पारिवारिक विवाद बताते हुए सिविल न्यायालय में अपील करने की छूट प्रदान की।
By Roman Tiwari
Edited By: Roman Tiwari
Publish Date: Wed, 04 Jun 2025 11:28:23 AM (IST)
Updated Date: Wed, 04 Jun 2025 11:28:23 AM (IST)

HighLights
- 12 साल बाद पिता के स्थान पर अनुंकपा नियुक्ति मांगने आया पुत्र
- हाई कोर्ट ने पारिवारिक विवाद के चलते याचिका खारिज कर दी
- हाई कोर्ट ने सिविल कोर्ट में मामला दायर करने की छूट दी
नईदुनिया प्रतिनिधि, बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में एक ऐसा मामला सामने आया, जिसने न्यायालय को परिवारिक संबंधों की गहराई में झांकने पर विवश कर दिया। हाई कोर्ट में कार्यरत भृत्य (प्यून) की सेवा के दौरान मृत्यु के 12 साल बाद एक युवक ने खुद को उसका पुत्र बताते हुए अनुकंपा नियुक्ति की मांग की। हालांकि, दस्तावेजी साक्ष्यों के अभाव और पारिवारिक विवाद के चलते हाई कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और याचिकाकर्ता को सिविल कोर्ट में दावा प्रस्तुत करने की छूट दी।
यह है पूरा मामला
बिलासपुर के यदुनंदन नगर निवासी गणेश नायडू छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में भृत्य के पद पर कार्यरत थे। 16 जून 2010 को उनकी सेवा के दौरान मृत्यु हो गई। उनकी पत्नी पूजा नायडू भी हाई कोर्ट में कार्यरत थीं, जिनकी बाद में सेवा के दौरान ही मृत्यु हो गई। इसके पश्चात गणेश नायडू की पुत्री ऋचा नायडू को अनुकंपा नियुक्ति दी गई, जिसे बाद में रद्द कर दिया गया। वहीं इसके बाद, उसलापुर निवासी नीलकांत नायडू ने 9 फरवरी 2022 को खुद को गणेश नायडू का पुत्र बताते हुए अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन प्रस्तुत किया। 26 मई 2022 को हाई कोर्ट प्रशासन ने यह आवेदन खारिज कर दिया, जिसके विरुद्ध नीलकांत ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की।
पहली पत्नी के बेटे होने का बताया आधार
याचिकाकर्ता नीलकांत का दावा था कि वह गणेश नायडू की पहली पत्नी रेशमा से उत्पन्न पुत्र है और वर्तमान में उसकी मां व बहन की आर्थिक जिम्मेदारी उसी पर है। उसने 14 जून 2013 के शासन के एक सर्कुलर का हवाला भी दिया, जिसमें मृत कर्मचारी के आश्रित पुत्र को अनुकंपा नियुक्ति का पात्र बताया गया है। वहीं, कोर्ट के समक्ष पेश दस्तावेजों के अनुसार गणेश नायडू ने अपनी सर्विस बुक में केवल पत्नी पूजा नायडू और बेटी ऋचा नायडू को नामांकित किया था। परिवार सूची में नीलकांत का कोई उल्लेख नहीं था। पूजा नायडू द्वारा दिए गए शपथ पत्र में स्पष्ट किया गया था कि ऋचा ही उनकी और गणेश नायडू की एकमात्र संतान है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया था कि बाकी बच्चे गणेश के बड़े भाई की संतानें हैं।
हाई कोर्ट ने यह निर्णय दिया
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता यह प्रमाणित नहीं कर पाया है कि वह मृतक कर्मचारी का पुत्र है। केवल किसी दस्तावेज या हलफनामे से यह दावा प्रमाणित नहीं हो सकता जब तक कि वैधानिक प्रमाण न हों। चूंकि यह पारिवारिक संबंधों और उत्तराधिकार का विषय है, इसका निर्धारण सिविल कोर्ट द्वारा किया जाना उचित होगा। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि कर्मचारी की मृत्यु के समय उसकी पत्नी (पूजा नायडू) सेवा में थीं, अतः नियमानुसार ऐसे मामले में अनुकंपा नियुक्ति का तत्काल दावा नहीं बनता। कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता को मामले के निपटारे के लिए सिविल कोर्ट में मामला दायर करने की छूट दी है।
भाभी का शपथ पत्र भी नहीं बना सहायक
नीलकांत ने अपने दावे के समर्थन में गणेश नायडू की भाभी उषा मूर्ति का शपथ पत्र प्रस्तुत किया, जिसमें कहा गया कि गणेश की दो पत्नियां थीं, रेशमा और पूजा। नीलकांत को रेशमा से जन्मा बताया गया। लेकिन हाई कोर्ट ने इसे पारिवारिक विवाद बताते हुए कहा कि यह याचिका के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।