ग्रुप में एक व्यक्ति भी दुष्कर्म करता है और बाकी उसका साथ देते हैं, तो सब के सब गैंगरेप के दोषी… छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

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May 30, 2025


बहुचर्चित सूरजपुर गैंग रेप के मामले में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के निर्णय में आंशिक बदलाव करते हुए उसे बरकरार रखा है। मामले में न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा कि पीड़िता की गवाही, गर्भावस्था और बच्चे का जन्म घटना की पुष्टि करते हैं। केवल वीडियो न मिलना या डीएनए रिपोर्ट मैच न होना दोषियों को नहीं बचा सकता।

By Roman Tiwari

Edited By: Roman Tiwari

Publish Date: Fri, 30 May 2025 01:52:11 PM (IST)

Updated Date: Fri, 30 May 2025 01:56:34 PM (IST)

ग्रुप में एक व्यक्ति भी दुष्कर्म करता है और बाकी उसका साथ देते हैं, तो सब के सब गैंगरेप के दोषी… छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

HighLights

  1. सूरजपुर गैंगरेप को लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का फैसला
  2. दुष्कर्म में साथ देने वाला सदस्य भी माना जाएगा दोषी
  3. न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के फैसले में किया आंशिक बदलाव

नईदुनिया प्रतिनिधि, बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने सूरजपुर जिले के बहुचर्चित गैंगरेप केस में पांच दोषियों को आंशिक राहत दी है। कोर्ट ने पाक्सो, एससी/एसटी और आइटी एक्ट के तहत दोषमुक्त किया, लेकिन आइपीसी की गंभीर धाराओं में सजा को बरकरार रखा।

पीड़िता की सुसंगत गवाही, गर्भावस्था और बच्चे का जन्म घटना की पुष्टि करते हैं, ऐसा कहते हुए कोर्ट ने कहा कि केवल वीडियो न मिलना या डीएनए रिपोर्ट मैच न होना दोषियों को नहीं बचा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि समूह का कोई एक व्यक्ति भी दुष्कर्म करता है और अन्य लोगों की मंशा भी उसका साथ देने की है, तो सभी दुष्कर्म के दोषी माने जाएंगे।

ट्रॉयल कोर्ट ने सभी को 20 साल तक की सजा दी थी। कोर्ट ने माना कि पीड़िता की उम्र 18 से कम साबित नहीं हुई व जाति प्रमाण पत्र घटना के 10 महीने बाद बना। आइटी एक्ट में कोई वीडियो बरामद नहीं हुआ। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आइपीसी की धाराओं के तहत सजा यथावत रहेगी और ट्रायल कोर्ट को आदेश पालन के निर्देश दिए।

मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा एवं न्यायमूर्ति रजनी दुबे की खंडपीठ ने यह फैसला को सुनाया है। अदालत ने कहा कि पीड़िता की स्पष्ट, सुसंगत और चिकित्सकीय रूप से पुष्ट गवाही के आधार पर गैंगरेप सिद्ध होता है।

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ये मामले खत्म किए गए कोर्ट ने पाक्सो अधिनियम को पीड़िता की आयु 18 वर्ष से कम सिद्ध नहीं हो पाने पर, एट्रोसिटी एक्ट को जाति प्रमाण पत्र घटना के 10 महीने बाद बनने और आरोपितों को पीड़िता की जाति की जानकारी नहीं होने पर और आइटी एक्ट को मोबाइल से कोई आपत्तिजनक वीडियो बरामद नहीं होने पर उसे खत्म कर दिया गया है।

डीएनए रिपोर्ट पर यह हुआ

पीड़िता ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन डीएनए परीक्षण में किसी भी आरोपी को उसका पिता नहीं पाया गया। हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह तथ्य अपराध को खारिज करने के लिए पर्याप्त नहीं है, क्योंकि कानून कहता है कि अगर समूह में कोई एक व्यक्ति दुष्कर्म करता है और अन्य उसकी मंशा में शामिल रहते हैं, तो सभी दोषी माने जाएंगे।

पांच युवकों ने किया था सामूहिक दुष्कर्म

पीड़िता ने शिकायत में बताया कि 19 दिसंबर 2021 को आरोपित मासूक रजा उसे बुलाकर एक सुनसान जगह ले गया, जहां पहले से मौजूद चार अन्य आरोपित अब्बू बकर उर्फ मोंटी, अशरफ अली उर्फ छोटू, मोहित कुमार व विनीत कुमार ने उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। आरोपितों ने घटना का वीडियो भी बना लिया और वायरल करने की धमकी दी। जनवरी और फरवरी 2022 में भी अलग-अलग जगहों पर पुनः गैंगरेप की घटनाएं हुईं। डर के मारे उसने किसी को कुछ नहीं बताया। गर्भवती होने पर उसने स्वजनों को बताया और पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई।

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हाई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए की सख्त टिप्पणी

हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले में आंशिक बदलाव करते हुए कहा कि, आइपीसी की धारा 363, 366, 506, 376 और 376 डी के तहत अपराध सिद्ध हुआ है। पीड़िता की गवाही, उसका गर्भवती होना और बच्चे को जन्म देना घटना की पुष्टि करता है। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि, पीड़िता की गवाही सुसंगत और अविश्वसनीय नहीं है। उसके बयान, मेडिकल रिपोर्ट और बच्चा पैदा होना सामूहिक दुष्कर्म की पुष्टि करते हैं। अभियुक्तों ने भय और ब्लैकमेलिंग के जरिए अपराध किए। सिर्फ वीडियो न मिलना या डीएनए रिपोर्ट मैच न होना, उनके अपराध को नकारने के लिए पर्याप्त नहीं है।

ट्रायल कोर्ट ने सुनवाई के बाद दिया था निर्णय

20 दिसंबर 2023 को विशेष न्यायाधीश, सूरजपुर ने सभी आरोपितों को दोषी ठहराते हुए विभिन्न धाराओं में 4 से 20 साल तक की कठोर सजा सुनाई थी। सभी को धारा 363/34 (अपहरण) में 4 वर्ष, धारा 366/34 (युवती को बहला-फुसलाकर ले जाना) में 6 वर्ष, धारा 376 डी (सामूहिक दुष्कर्म) में 20 वर्ष, धारा 6 पाक्सो अधिनियम के तहत 20 वर्ष, एससी/एसटी एक्ट के तहत आजीवन कारावास और धारा 67 बी आइटी एक्ट में 5 वर्ष और एक लाख रुपये जुर्माना की सजा दी गई थी। आरोपितों ने फिर हाई कोर्ट में अपील की।



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