मामला छत्तीसगढ़ के बिलासपुर का है। सीपत निवासी दिव्यांग किसान सुजान सिंह की जिंदगी सरकारी अधिकारियों की उपेक्षा की मार झेल रही है। दुर्घटना के बाद उनका चलना-फिरना तो बंद हो चुका है और वृद्धावस्था ने उनके हथेलियों की लकीरों को भी धुंधला कर दिया है।
By Arvind Dubey
Publish Date: Mon, 07 Apr 2025 11:36:30 AM (IST)
Updated Date: Mon, 07 Apr 2025 12:51:57 PM (IST)

HighLights
- सिर्फ हाथ की लकीरें ही नहीं मिटीं, सपने भी मिट रहे
- कई सरकारी दफ्तरों और बैंकों के चक्कर काट चुके हैं
- सत्यापन नहीं होने से ई-केवाईसी अपडेट नहीं हो रहा
नईदुनिया प्रतिनिधि, बिलासपुर: सीपत क्षेत्र निवासी दिव्यांग किसान सुजान सिंह दो वर्षों से सिस्टम की संवेदनहीनता का शिकार हैं। वृद्धावस्था और दुर्घटना के बाद उनकी उंगलियों के निशान मिट चुके हैं, जिससे उनका आधार सत्यापन नहीं हो रहा है।
यही वजह है कि उन्हें पीएम किसान सम्मान निधि और अन्य योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। अफसरों से गुहार लगाने के बाद भी अब तक समाधान नहीं हुआ।
दिव्यांगता राशि भी नहीं मिल रही
- फिंगरप्रिंट नहीं आने के कारण आधार सत्यापन नहीं हो पा रहा, जिससे ई-केवाईसी अपडेट नहीं हो रहा है। तकनीकी अड़चन के कारण उन्हें प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के 11 किस्त नहीं मिल पाए।
- किसान ने बताया कि उन्हें दिव्यांगता की जो राशि मिलनी चाहिए उससे भी वह वंचित हो रहे हैं। सुजान सिंह ने एसडीएम मस्तूरी से लेकर कलेक्टर तक जनदर्शन में आवेदन दिया, लेकिन अफसरों ने केवल आश्वासन दिया। अब तक समस्या का समाधान नहीं निकाल पाए।
सारे बैंक के काट चुके हैं चक्कर
पीड़ित सुजान सिंह ने बताया कि वे अब तक सीपत के जिला सहकारी बैंक, भारतीय डाकघर और एसबीआई शाखा में केवाईसी अपडेट कराने स्वजन के साथ जा चुके हैं। वे अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं हैं, कई और दिव्यांग और बुजुर्ग हैं जिनके हाथ की लकीरें धुंधली हो चुकी हैं।
सुजान सिंह कहते हैं कि सरकारें किसानों के नाम पर वोट तो मांगती हैं, पर जरूरत पड़ने पर वही किसान अकेला रह जाता है। सुजान सिंह चलने-फिरने में लाचार हैं और बिस्तर में पड़े रहते हैं। फिर भी प्रशासन उनकी समस्या नहीं सुन रहा।
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सिस्टम की चूक से टूटा भरोसा
सीपत सहित एनटीपीसी क्षेत्र के किसी भी बैंक में आंख की रेटिना के आधार पर बनाए गए आधार कार्ड स्कैन करने की सुविधा नहीं है। वृद्ध और दिव्यांग किसानों के लिए कोई विकल्प नहीं है, जिससे वे योजनाओं के लाभ से वंचित हो रहे हैं।