सुनवाई के दौरान सरकार ने बताया कि प्रदेश में संचालित उद्योगों और कारखानों में प्रदूषण नियंत्रण के उपाय किए जा रहे हैं। इसके अलावा 36 कंपनियों को नोटिस जारी किया गया है। हालांकि, हाई कोर्ट ने इस जवाब को अपर्याप्त मानते हुए फिर से निरीक्षण कर विस्तृत रिपोर्ट देने का निर्देश दिया।
By Shashank Shekhar Bajpai
Publish Date: Thu, 20 Mar 2025 12:48:08 PM (IST)
Updated Date: Thu, 20 Mar 2025 12:48:08 PM (IST)

HighLights
- हाई कोर्ट ने राज्य शासन के जवाब को माना असंतोषजनक।
- कोर्ट ने दोबारा निरीक्षण कर रिपोर्ट पेश करने को कहा है।
- चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच में सुनवाई के बाद मिले निर्देश।
नईदुनिया प्रतिनिधि, बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में बढ़ते प्रदूषण को लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में जनहित याचिका पर सुनवाई जारी है। हाई कोर्ट ने राज्य शासन के जवाब को असंतोषजनक मानते हुए सभी 60 उद्योगों का दोबारा निरीक्षण कर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।
बुधवार को चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच में सुनवाई के दौरान सरकार ने बताया कि प्रदेश में संचालित उद्योगों और कारखानों में प्रदूषण नियंत्रण के उपाय किए जा रहे हैं और 36 कंपनियों को नोटिस जारी किया गया है। हालांकि, हाई कोर्ट ने इस जवाब को अपर्याप्त मानते हुए कोर्ट कमिश्नरों, अतिरिक्त महाधिवक्ता और शासन के अधिकारियों को फिर से निरीक्षण कर विस्तृत रिपोर्ट देने का निर्देश दिया।
प्रदेश के उद्योगों में काम करने वाले श्रमिकों को सीमेंट और लोहे की डस्ट से होने वाली परेशानियों और फेफड़ों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को लेकर उत्कल सेवा समिति, लक्ष्मी चौहान, गोविंद अग्रवाल, अमरनाथ अग्रवाल सहित अन्य याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं। हाई कोर्ट ने इन याचिकाओं को संज्ञान में लेते हुए एक जनहित याचिका पर संयुक्त सुनवाई शुरू की।
60 उद्योगों की होगी विस्तृत
जांच पूर्व में हाई कोर्ट ने राज्य के उद्योगों का निरीक्षण करने के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किए थे, जिन्होंने विभिन्न संभागों में उद्योगों का निरीक्षण कर रिपोर्ट सौंपी थी। अब कोर्ट के नए आदेश के बाद एक बार फिर सभी 60 उद्योगों की विस्तृत जांच होगी और प्रदूषण की वास्तविक स्थिति पर रिपोर्ट पेश की जाएगी।
प्राचार्य प्रमोशन का मामला हाई कोर्ट पहुंचा
छत्तीसगढ़ में प्राचार्य पदोन्नति का मामला फिर से हाई कोर्ट पहुंच गया है, जहां बीएड डिग्री को अनिवार्य करने की मांग उठी है। वहीं, प्राचार्य पदोन्नति फोरम ने इस पर हस्तक्षेप याचिका दायर कर तर्क दिया है कि प्राचार्य का पद प्रशासनिक होता है, इसलिए बीएड की अनिवार्यता उचित नहीं है।
लेक्चरर अखिलेश त्रिपाठी ने अपने वकील के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि, जिस तरह प्राइमरी शिक्षकों के लिए डीएलएड और हाईस्कूल व हायर सेकेंडरी शिक्षकों के लिए बीएड अनिवार्य है, उसी प्रकार प्राचार्य पदोन्नति के लिए भी बीएड डिग्री आवश्यक होनी चाहिए।
याचिका में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) के नियमों का हवाला देते हुए प्राचार्य पद की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता निर्धारित करने की मांग की गई है। अब हाई कोर्ट इस मामले पर सुनवाई करेगा और तय करेगा कि प्राचार्य बनने के लिए बीएड डिग्री अनिवार्य होगी या नहीं।