CG HC Rape Case: खबर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से है। यहां एक महिला सरकारी ने अधिकारी ने आरोप लगाया कि उसके साथ शादी का झूठा वादा करके दुष्कर्म किया गया। निचली अदालत ने आरोपी को 10 साल की सजा सुनाई थी, लेकिन हाई कोर्ट ने निर्दोष करार दिया।
By Arvind Dubey
Publish Date: Thu, 15 May 2025 11:16:05 AM (IST)
Updated Date: Thu, 15 May 2025 11:21:13 AM (IST)

HighLights
- महिला ने आरोपी अरविंद श्रीवास पर 2017 में लगाया था आरोप
- 2017 में ही महिला ने कराया था गर्भपात, 2018 में हुई थी FIR
- गर्भपात के दस्तावेजों पर महिला ने आरोपी को बताया था पति
नईदुनिया प्रतिनिधि, बिलासपुर (CG HC Rape Case): छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में झूठे विवाह के वादे पर दुष्कर्म के मामले में दोषी ठहराए गए युवक को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त कर दिया है। निचली अदालत ने आरोपी को 10 साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।
हाई कोर्ट (Bilaspur High Court) के न्यायमूर्ति संजय के. अग्रवाल की एकलपीठ ने कहा कि पीड़िता न केवल बालिग और विवाहित थी, बल्कि वह एक शासकीय अधिकारी के रूप में कार्यरत थी और अपने भले-बुरे का निर्णय स्वयं लेने में सक्षम थी। इस परिस्थिति में यह नहीं माना जा सकता कि आरोपी ने उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए या विवाह का झूठा वादा कर उसे धोखा दिया।
बिना तलाक प्रेम के साथ रहीं, गर्भपात के दौरान आरोपी को बताया था पति
- मामला जांजगीर-चांपा जिले से जुड़ा है, जहां आरोपी अरविंद श्रीवास पर वर्ष 2017 में पीड़िता के साथ विवाह का वादा कर लगातार दुष्कर्म करने का आरोप लगा था। पीड़िता गर्भवती हुई और बाद में 27 दिसंबर 2017 को उसका गर्भपात कराया गया।
- इसके बाद एक फरवरी 2018 को एफआईआर दर्ज हुई। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, जांजगीर की अदालत ने आरोपी को आईपीसी की धारा 376(2)(एन) के तहत दोषी पाते हुए 10 वर्ष के कठोर कारावास और ₹50,000 के जुर्माने की सजा सुनाई थी। इस फैसले के खिलाफ आरोपी ने हाई कोर्ट में अपील की थी।
- हाई कोर्ट ने कहा- पीड़िता की उम्र घटना के समय 29 वर्ष थी। वह शिक्षित और राज्य सरकार की कृषि विभाग में कृषि विस्तार अधिकारी के पद पर कार्यरत थी। वह पहले से विवाहित थी और तलाक नहीं हुआ था, यानी वैधानिक रूप से विवाह योग्य नहीं थी।
- आरोपी और पीड़िता का सगाई समारोह 28 जून 2017 को हुआ था और दोनों के बीच आपसी सहमति से संबंध बने। गर्भपात की अनुमति भी पीड़िता ने स्वयं लिखित रूप से दी, जिसमें आरोपी को उसका पति दर्शाया गया था। एफआईआर घटना के एक महीने बाद दर्ज की गई, जिसकी कोई ठोस वजह नहीं बताई गई।
- पीड़िता ने कोर्ट में कहा कि यदि उसका विवाह आरोपी से हो जाता, तो वह पुलिस में रिपोर्ट नहीं करती। इसके साथ ही पीड़िता के पिता ने भी स्वीकार किया कि उन्होंने सगाई में खर्च की रकम नहीं लौटाए जाने के कारण रिपोर्ट की थी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का दिया हवाला
हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के नाइम अहमद बनाम दिल्ली राज्य और एक अन्य मामले का हवाला दिया, जिनमें कहा गया था कि बालिग और विवाहित महिला जो वर्षों तक सहमति से संबंध रखती है, वह झूठे वादे के आधार पर दुष्कर्म का दावा नहीं कर सकती।
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आत्मसमर्पण की आवश्यकता नहीं
न्यायालय ने कहा – इस मामले में कोई ऐसा ठोस प्रमाण नहीं है जिससे यह साबित हो कि पीड़िता ने संबंध केवल विवाह के झूठे वादे के कारण बनाए। इसलिए आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त किया गया। हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का दोषसिद्धि आदेश रद्द किया और आरोपी को पूरी तरह बरी किया। कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपी जमानत पर था, उसे आत्मसमर्पण की आवश्यकता नहीं है।