छत्तीसगढ़ में बिलासपुर हाई कोर्ट ने रिटायरमेंट के बाद वेतन वसूली मामले में ऐतिहासिक फैसला दिया है। पीड़ित अहमद हुसैन हैं, जो स्वास्थ्य विभाग में हेड क्लर्क रहते रिटायर हुए हैं। विभाग का कहना है कि उन्हें सेवाकाल में गलती से ज्यादा वेतन दिया गया।
By Arvind Dubey
Publish Date: Fri, 18 Apr 2025 09:47:59 AM (IST)
Updated Date: Fri, 18 Apr 2025 09:56:06 AM (IST)

HighLights
- स्वास्थ्य विभाग ने जारी किया था वसूली का नोटिस
- हाईकोर्ट ने राहत देते हुए रद्द किया आदेश
- सुप्रीम कोर्ट का एक फैसले को बनाया आधार
नईदुनिया प्रतिनिधि, बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में रिटायर्ड कर्मचारी से की जा रही वेतन की वसूली को गैरकानूनी करार देते हुए विभागीय आदेश को रद्द कर दिया है। यह फैसला न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की एकलपीठ ने सुनाया।
कोरबा निवासी 63 वर्षीय अहमद हुसैन स्वास्थ्य विभाग में हेड क्लर्क के पद से रिटायर हुए हैं। उन्हें 1 जून 2023 को एक पत्र प्राप्त हुआ। इसमें कहा गया कि 1 जनवरी 1986 से 28 फरवरी 2023 तक उन्हें गलती से अधिक वेतन दिया गया, जिसकी वसूली की जाएगी।
डायरेक्टरेट ऑफ हेल्थ सर्विसेज और कोरबा के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) ने मिलकर यह वसूली का आदेश जारी किया।
याचिकाकर्ता की आपत्ति
अहमद हुसैन के वकील डॉ. सुदीप अग्रवाल ने कोर्ट में तर्क दिया कि यह वसूली सुप्रीम कोर्ट के 2015 के रफीक मसीह फैसले के खिलाफ है। हुसैन क्लास-तीन कर्मचारी हैं और उन्हें इस अतिरिक्त राशि के भुगतान की जानकारी नहीं थी।
यह वसूली उनके लिए वित्तीय संकट और मानसिक पीड़ा का कारण बन सकती है। राज्य की ओर से अधिवक्ता ने कहा कि विभाग ने जब त्रुटिपूर्ण भुगतान की पहचान की, तो नियम अनुसार वसूली का आदेश दिया।
यहां भी क्लिक करें – सार्थक एप से उपस्थिति अनिवार्य, अन्यथा कटेगा प्रोफेसरों का वेतन
कोर्ट का फैसला
कोर्ट ने कहा कि अहमद हुसैन क्लास-तीन कर्मचारी हैं और रिटायर हो चुके हैं। उन्होंने जानबूझकर कोई धोखाधड़ी नहीं की। सुप्रीम कोर्ट ने अपने रफीक मसीह व जोगेश्वर साहू जैसे मामलों में ऐसे वसूली आदेशों को असंवेदनशील और अनुचित ठहराया है।
कोर्ट ने कहा कि यह वसूली न सिर्फ नियमों के खिलाफ है बल्कि कर्मचारी की गरिमा व सम्मान के खिलाफ भी। न्यायालय ने याचिका स्वीकार करते हुए वसूली आदेश को रद्द कर दिया है।
असिस्टेंट प्रोफेसर के साक्षात्कार में शामिल करें : हाई कोर्ट
इस बीच, मध्य प्रदेश में जबलपुर हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत व विवेक जैन की युगलपीठ ने असिस्टेंट प्रोफेसर परीक्षा-2022 में आवेदक की उम्मीदवारी निरस्त किए जाने को प्रथम दृष्टया अनुचित पाया। इसी के साथ अंतरिम आदेश के तहत 21 अप्रैल को होने वाले साक्षात्कार में शामिल करने के निर्देश दे दिए। हालांकि परिणाम सीलबंद लिफाफे में रखने की भी व्यवस्था दी गई है।
वहीं पीएससी को जवाब पेश करने के लिए समय दे दिया। मामले की अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद नियत की गई है। याचिकाकर्ता राजस्थान अंतर्गत बंसवारा निवासी उदित त्रिवेदी की ओर से अधिवक्ता अंशुल तिवारी ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता चार्टेड एकाउंटेंट है, जिसका सर्टिफिकेट भी है।
याचिकाकर्ता ने असस्टिेंट प्रोफेसर-2022 के लिए आवेदन किया था, इसके बाद परीक्षा भी उन्होंने उत्तीर्ण की। लेकिन चयन सूची में नाम आने के बाद भी साक्षात्कार में शामिल नहीं किया जा रहा है। इसका कारण असिस्टेंट प्राेफेसर पद के लिए पीजी डिग्री होने की आवश्यकता पूरी न करना बताया जा रहा है। यह रवैया इसलिए अनुचित है क्योंकि यूजीसी का सर्कुलर है कि सीए, सीएस व आईसीडब्ल्यूए को पीजी के समकक्ष माना जाए। आवेदक सीए है, अत: असिस्टेंट प्राेफेसर पद के लिए योग्य है।