छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म के मामले में सजा काट रहे दोषियों की याचिका की सुनवाई करने से इनकार करते हुए उसे रद्द कर दिया। हाई कोर्ट ने याचिका रद्द करते हुए कहा कि पाक्सो अधिनियम के तहत दंडित किए गए अभियुक्तों को राहत देना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है।
By Roman Tiwari
Edited By: Roman Tiwari
Publish Date: Sun, 15 Jun 2025 01:35:18 PM (IST)
Updated Date: Sun, 15 Jun 2025 01:39:56 PM (IST)

HighLights
- हाई कोर्ट ने दुष्कर्म की सजा काट रहे आरोपियों की याचिका रद्द की
- निचली अदालत ने 20 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई है
- दोषियों ने शादी में आयी नाबालिग के साथ किया था सामूहिक दुष्कर्म
नईदुनिया प्रतिनिधि, बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म के तीन आरोपितों की सजा के खिलाफ दायर अपील को खारिज करते हुए स्पष्ट किया है कि बच्चों के विरुद्ध यौन उत्पीड़न के मामलों को अत्यंत गंभीरता से लिया जाना चाहिए और ऐसे मामलों में दोषियों के प्रति कोई भी नरमी न तो कानूनसम्मत है और न ही समाज के हित में।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा एवं न्यायमूर्ति बी.डी. गुरु की युगलपीठ ने कहा कि पाक्सो अधिनियम के तहत दंडित किए गए अभियुक्तों को राहत देना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है। कोर्ट ने सत्र न्यायाधीश (एफटीसी), कोंडागांव के आदेश को बरकरार रखते हुए सभी तीन दोषी पंकू कश्यप, मनोज बघेल और पिंकू कश्यप की अपीलें खारिज कर दीं।
निचली अदालत ने दी थी 20 साल की सजा
साक्ष्यों और गवाही के आधार पर अगस्त 2021 में एफटीसी कोंडागांव ने तीनों आरोपियों को पाक्सो एक्ट की धारा 6 तथा आइपीसी की धारा 376डी (सामूहिक बलात्कार) के तहत दोषी ठहराते हुए 20-20 वर्ष की सश्रम कारावास और 5,000 के अर्थदंड की सजा सुनाई थी। जुर्माना न अदा करने की स्थिति में 3-3 साल की अतिरिक्त सजा का भी प्रावधान किया गया था।
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क्या था पूरा मामल
मामला 26 अप्रैल 2019 का है, जब एक नाबालिग लड़की कोंडागांव क्षेत्र में एक विवाह समारोह में शामिल होने गई थी। रात लगभग 11 बजे वह अपनी सहेली के साथ वाशरूम जा रही थी, तभी चार युवकों ने उसे जबरदस्ती खेत की ओर खींच लिया और बारी-बारी से दुष्कर्म किया। पीड़िता ने घटना के दौरान मोबाइल टार्च की रोशनी में आरोपितों को पहचान लिया और रात में ही मां को घटना की जानकारी दी। इसके बाद कोंडागांव थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई। पुलिस ने एक नाबालिग समेत चारों आरोपितों को गिरफ्तार कर उनके खिलाफ न्यायालय में चालान पेश किया।
कोर्ट ने गवाही को माना ठोस, कहा – यह प्रमाणित करने में सफल
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष यह प्रमाणित करने में सफल रहा है कि घटना की तिथि पर पीड़िता की आयु 18 वर्ष से कम थी, और वह बालिका की श्रेणी में आती थी। अभियुक्तों ने उसकी इच्छा और सहमति के बिना सामूहिक दुष्कर्म किया, जो धारा 376डी के तहत स्पष्ट रूप से सामूहिक दुष्कर्म की परिभाषा में आता है।
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कोर्ट ने यह भी कहा कि यौन अपराधों में पीड़िता की एकमात्र गवाही भी दोष सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हो सकती है, यदि वह विश्वसनीय और ठोस हो। वर्तमान मामले में पीड़िता ने साहस के साथ घटना का पूरा विवरण स्पष्ट रूप से रखा और उसकी गवाही न्यायालय द्वारा अकाट्य मानी गई। हाई कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि बच्चों के विरुद्ध यौन अपराध के मामलों में नरमी बरतना समाज में गलत संदेश देगा और इससे अपराधियों का मनोबल बढ़ेगा।