Chhattisgarh Water Crisis; Rainfall Shortage | Dams Water Level | छत्तीसगढ़ में जल-संकट…डैम में 20% से भी कम पानी: 5 ब्लॉक क्रिटिकल, 21 सेमी-क्रिटिकल जोन में, 50% भूजल दोहन, बारिश नहीं हुई तो बढ़ेगा खतरा – Chhattisgarh News

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May 14, 2025


छत्तीसगढ़ के डैम सूख रहे हैं। 46 में से 32 डैम बीते साल से ज्यादा खाली हैं। 20 डैम तो ऐसे हैं, जहां जलस्तर 25% से नीचे गिर चुका है।

छत्तीसगढ़ के डैम सूख रहे हैं। 46 में से 32 डैम बीते साल से ज्यादा खाली हैं। 20 डैम तो ऐसे हैं, जहां जलस्तर 25% से नीचे गिर चुका है। भूजल का 50% से ज़्यादा दोहन हो रहा है, जिससे पानी पाताल में समा चुका है। हालात इतने गंभीर हैं कि कई इलाकों में 300-400

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केंद्र की रिपोर्ट चेतावनी दे रही है कि छत्तीसगढ़ के 5 ब्लॉक ‘क्रिटिकल’ स्थिति में हैं। इसमें बेमेतरा, नवागढ़, बेरला, गुरूर और धरसींवा के हालात सबसे भयावह हैं। वहीं 21 ब्लॉक ‘सेमी-क्रिटिकल’ जोन में पहुंच चुके हैं। किसानों को फसल के लिए पानी नहीं मिल रहा।

प्रदेश में बरसात भी नहीं हो रही, जबकि 300 प्रतिशत से ज्यादा वाष्पीकरण है। इससे जल संकट का खतरा मंडरा रहा है। यह आंकड़े नहीं, एक गंभीर जल-त्रासदी के संकेत हैं। कई इलाकों में लोग बूंद-बूंद को तरस रहे हैं। केंद्र सरकार की भूजल रिपोर्ट में ये बातें निकलकर सामने आई है। इस रिपोर्ट में पढ़िए पानी की भयावह होती समस्या के पीछे की सच्चाई, वैज्ञानिकों की राय और संभावित समाधान।

किसानों को फसल के लिए पानी नहीं मिल रहा

छत्तीसगढ़ में अप्रैल के शुरू में ही किसानों को फसल के लिए पानी नहीं मिल रहा। कई इलाकों में निस्तारी की समस्या आ रही है। राजधानी रायपुर के कई वार्ड भी जलसंकट से जूझ रहे हैं। पानी की कमी से इलाकों में भयावह स्थिति होती जा रही है।

एक्सपर्ट्स के मुताबिक वायुमंडल में कार्बन के कण ज्यादा हैं। तेजी से वाष्पीकरण के कारण डैम का पानी गर्मी की शुरुआत में ही सूख रहा है। इसके साथ ही ग्राउंड वाटर का लेवल भी डाउन हुआ है। आने वाले दिनों में समय में बारिश नहीं हुई, तो प्रदेश में जलसंकट आ जाएगा।

छत्तीसगढ़ के डैम सूख रहे हैं। लगातार पानी का लेवल कम होता जा रहा है। खतरे के संकेत मिल रहे हैं।

छत्तीसगढ़ के डैम सूख रहे हैं। लगातार पानी का लेवल कम होता जा रहा है। खतरे के संकेत मिल रहे हैं।

कोरबा जिले में स्थित जलाशय में पानी की स्थिति।

कोरबा जिले में स्थित जलाशय में पानी की स्थिति।

छत्तीसगढ़ के डैम में पानी की कमी के कारण नहरों में पानी की रफ्तार कम हो गई है।

छत्तीसगढ़ के डैम में पानी की कमी के कारण नहरों में पानी की रफ्तार कम हो गई है।

प्रदेश के वैज्ञानिकों ने विभागीय अधिकारियों को सलाह दी है, कि एक्सपर्ट की मदद से वायुमंडल के कार्बन को कम कराए, डैम, नहर और नदी और जलस्रोत के नेटवर्क को योजना करके सुधारा जाए, तब ही इस समस्या का समाधान निकलेगा,अन्यथा आने वाले सालों में इससे अधिक समस्या हो सकती है।

12 मई को सीएम साय समीक्षा के दौरान अफसरों से चर्चा करते हुए।

12 मई को सीएम साय समीक्षा के दौरान अफसरों से चर्चा करते हुए।

सीएम साय ने भी ली है अफसरों की बैठक

12 मई को मुख्यमंत्री निवास में सीएम साय ने विभागीय अधिकारियों की बैठक ली और जल संसाधन विभाग के कार्यों की समीक्षा की। बैठक में प्रदेश के मौजूदा सिंचाई परियोजनाओं के रखरखाव और मरम्मत पर विशेष ध्यान दिया जाने का निर्देश दिया है।

सीएम साय ने प्रदेश के सभी बांधों की जल भराव क्षमता, वर्तमान सिंचाई स्थिति और आगामी परियोजनाओं के प्रगति की समीक्षा की। उन्होंने कहा कि नहरों के माध्यम से जल परिवहन में होने वाली हानि को रोकने के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग करने का निर्देश दिया है।

कम बारिश–वाष्पीकरण और क्षतिग्रस्त डैम पानी कम होने का बड़ा कारण

एक्सपर्ट के अनुसार प्रदेश में बारिश की कमी, पानी का तेजी से वाष्पीकरण डैम और जमीन का पानी कम होने का प्रमुख कारण है। इसके अलावा डैम के क्षतिग्रस्त होने से पानी कम हो रहा है। प्रदेश के बड़े डैम में शामिल मिनीमाता बांगो में 5 मई को 27.51 प्रतिशत जलभराव था, जबकि पिछले साल इसी दिन जलभराव 45.86 प्रतिशत था।

इसी तरह से तांदुला डैम में जलभराव 17.30 प्रतिशत, सिकासेर में 20.13, बिलासपुर के खरंग डैम में जलभराव 35.99 बचा है।

छत्तीसगढ़ के 20 डैम में महज 25 प्रतिशत पानी बचा

जल संसाधन विभाग की वेबसाइट से मिले आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के 20 डैम में 25 प्रतिशत पानी शेष बचा हुआ है। इस लिस्ट में खरखरा, बल्लार, मोगरा बार, कोसारटेड, परालकोट, केशव डैम, केदार नाला, किनकिरी नाला, सूखा नाला, कुम्हारी, पेंड्रावन, पुटका नाला, सूखा नाला और घुमरिया नाला बैराज शामिल है।

छत्तीसगढ़ में हो रहा 49.58 भूजल का दोहन

केंद्रीय जल मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में औसत भूजल दोहन 49.58 प्रतिशत दर्ज किया गया है। ये भूजल दोहन प्रदेश में तब हो रहा है, जब औसतन बारिश 1266.9 मिमी होती है। बारिश के पानी को सिंचित करने और भूजल पुनर्भरण करने की व्यवस्था करनी होगी, अन्यथा ये स्थिति और भी खतरनाक होगी।

डैम, नहर और नदी के नेटवर्क को सुधारने की आवश्यकता- गौतम बंद्धोपाध्याय

डैम और तालाबों के लिए संघर्ष कर रहे नदी घाटी मोर्चा के संयोजक गौतम बंद्धोपाध्याय ने दैनिक भास्कर से चर्चा के दौरान कहा, कि डैम, नहर और सब पुराने है। इनका जीर्णोद्धार करने और आधुनिक तकनीकी से जोड़ने की आवश्यकता है।

पानी कम होने का कारण वायुमंडल में कार्बन- डॉ परवेज

प्रदेश में पानी की लेवल कम होने को कैसे सुधारा जा सकता है, इसकी जानकारी के लिए दैनिक भास्कर ने साइंटिस्ट डॉ. शम्स परवेज से चर्चा की। डॉ. परवेज ने बताया, कि वाटर लेवल कम होने का कारण ज्यादा वाष्पीकरण है। छत्तीसगढ़ के वायुमंडल में कार्बन के ज्यादा कण होने की वजह से वाष्पीकरण ज्यादा हो रहा है।

आर्गेनिक कार्बन की वजह से उद्योगों से अपूर्ण दहन के बाद निकलने वाला धुआं है। 60 मिलियन कोयला छत्तीसगढ़ के उद्योगों में जल रहा है। ये कोयला लो ग्रेड वाला है। इस वजह से कार्बन का उत्सर्जन ज्यादा होता है।

उद्योगों का सीएसआर मद संरक्षण में लगाना चाहिए- डॉ चंद्राकर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. गजेंद्र चंद्राकर ने दैनिक भास्कर से चर्चा के दौरान कहा, कि उद्योगों के सीएसआर मद को जलाशयों और तालाबों के निर्माण में खर्च करना चाहिए। ग्रीष्मकालीन धान के लिए सरकार को पहले से निर्णय लेना चाहिए।

गर्मी में जो फसल कम पानी ले, उसे लगाने की गाइडलाइन किसानों को जारी करना चाहिए। छोटे बांधों से बड़े जलाशयों की क्षमता बढ़ेगी और भविष्य में जल संकट से उबरने का यही रास्ता है।

ग्रीष्मकालीन धान में लगता है 100 करोड़ क्यूबिक लीटर पानी- संकेत ठाकुर

स्वतंत्र कृषि वैज्ञानिक और शोधकर्ता संकेत ठाकुर ने दैनिक भास्कर से चर्चा के दौरान कहा, कि प्रदेश में लगभग चार लाख हेक्टेयर में ग्रीष्मकालीन धान की खेती होती है। इस धान को तैयार करने में लगभग 100 करोड़ क्यूबिक लीटर पानी लगता है।

पंजाब जैसे राज्यों ने पानी की किल्लत को देखते हुए ग्रीष्मकालीन धान पर प्रतिबंध लगा दिया है। प्रदेश में भी इस नियम को लागू कर देना चाहिए। ग्रीष्मकालीन धान पर प्रतिबंध लगाने के साथ किसानों को मुआवजा देना चाहिए, ताकि किसान आर्थिक रूप से संबल हो सके।

रबी फसल में धान की खेती के लिए सबसे अधिक पानी की जरूरत होती है। ढाई एकड़ में साढ़े 50 लाख लीटर से अधिक पानी की खपत होती है। रबी फसल बंद होने से काफी हद तक वाटर लेवल काे नियंत्रित किया जा सकता है।

जल संकट की मुख्य वजहें:

  • असंतुलित बारिश और मौसम का बदलता मिजाज
  • मानसून की अनिश्चितता, औसत से कम वर्षा और बारिश के असमान वितरण ने जल स्रोतों को प्रभावित किया है।
  • भूजल का अत्यधिक दोहन
  • कृषि, उद्योग और घरेलू जरूरतों के लिए बेतहाशा बोरवेल और ट्यूबवेल से पानी निकाला गया।
  • recharge की तुलना में खपत कई गुना अधिक हो गई।
  • जल संरक्षण ढांचों की उपेक्षा:तालाब, जोहड़, छोटे बाँध और नहरें उपेक्षित हैं।
  • कई जलाशयों की सिल्टिंग (कीचड़ जमाव) ने उनकी क्षमता घटा दी है।
  • वनों की कटाई और शहरीकरण:पेड़ कम होने से जल धारण क्षमता घटी है।
  • कंक्रीट के जंगलों ने जमीन में पानी रिसने की प्राकृतिक प्रक्रिया को बाधित किया है।
  • वाष्पीकरण की दर में भारी बढ़ोतरी:अधिक गर्मी और ग्लोबल वार्मिंग के चलते जलाशयों से पानी तेजी से भाप बनकर उड़ रहा है।
  • 300% तक की वाष्पीकरण दर बड़ी चुनौती बन गई है।

पेड़-पौधे मिट्‌टी को बहने से रोकते हैं

  • पानी को रोकने में पौधे बहुत बड़ा रोल निभाते हैं।
  • हरियाली होने से मिट्‌टी पानी के साथ बहकर नहीं जाती क्योंकि पौधों की जड़ें मिट्‌टी को बांधकर रखती हैं।
  • मिट्‌टी के होने से पानी का रिसाव जमीन के अंदर तक होता है, इसलिए आने वाले बारिश के दिनों में घरों के आसपास भरपूर पौधे लगाएं।
  • इस बार के सीजन में लगाए पौधे एक से दो साल में अच्छी जड़ें पकड़ने के बाद वॉटर लेवल बढ़ाने में मदद करेंगे।



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