
दुष्कर्म की शिकार हुई विक्षिप्त युवती को अबॉर्शन की अनुमति दी गई है। हाई कोर्ट के जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की सिंगल बेंच ने कहा है कि भारतीय समाज में विवाह के बाद गर्भावस्था आम तौर पर न केवल जोड़े के लिए बल्कि उनके परिवारों और मित्रों के लिए भी
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लेकिन विवाह के बाहर की गर्भावस्था, खासकर यौन उत्पीड़न के बाद पीड़िता के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर डालती है। यह गर्भावस्था स्वैच्छिक नहीं होती, इसलिए इससे पीड़िता को और अधिक मानसिक आघात पहुंचता है। ऐसे में पीड़िता को यह अधिकार मिलना चाहिए कि वह गर्भावस्था जारी रखना चाहती है या नहीं।
रतनपुर क्षेत्र में रहने वाली 26 वर्षीय मानसिक रूप से विक्षिप्त युवती से दुष्कर्म किया गया था। इस कारण वह गर्भवती हो गई। जानकारी मिलने पर परिजनों ने रतनपुर थाने में मामला दर्ज करवाया। इधर, उसकी बहन ने पीड़िता की मानसिक स्थिति का हवाला देते हुए गर्भपात की अनुमति की मांग करते हुए याचिका लगाई है।
राज्य सरकार ने कहा कि गर्भपात की अनुमति देने से पहले पीड़िता की चिकित्सकीय जांच जरूरी है। इस पर हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि पीड़िता को सिम्स में मेडिकल जांच के लिए ले जाया जाए। सिम्स को जांच कर यह रिपोर्ट देने को कहा गया कि क्या पीड़िता का स्वास्थ्य गर्भपात के लिए उपयुक्त है। रिपोर्ट 1 अप्रैल 2025 तक मांगी गई थी। राज्य सरकार के रिपोर्ट देने के बाद 4 अप्रैल को याचिका पर सुनवाई हुई।
भ्रूण का डीएनए नमूना लेकर सबूत के लिए रखें सुरक्षित जल्द करें अबॉर्शन पीड़िता सिम्स में भर्ती है। हाई कोर्ट ने उसकी जांच करने वाली टीम को गर्भावस्था समाप्त करने की प्रक्रिया पूरी करने के आदेश दिए हैं। भ्रूण का डीएनए नमूना लिया जाएगा और सबूत के तौर पर सुरक्षित रखा जाएगा।