Even if divorce is by mutual consent, monthly allowance will have to be given to the wife | सहमति से तलाक फिर भी देना होगा महीने का खर्च: हाईकोर्ट बोला- पत्नी की दूसरी शादी नहीं होती तब तक पहले पति की जिम्मेदारी – Bilaspur (Chhattisgarh) News

Author name

April 19, 2025


तलाक और भरण-पोषण को लेकर हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है।

यदि पति पत्नी आपसी सहमति से तलाक ले रहे है तो भी पति को पत्नी का भरण पोषण देना होगा। ये फैसला छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल ने तलाक और भरण पोषण के मामले में सुनाया है।

.

कोर्ट ने कहा कि जब तक तलाकशुदा पत्नी की दूसरी शादी नहीं हो जाती, वह भरण-पोषण की हकदार होती है। यह पति की नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी है कि वह अपनी पूर्व पत्नी को सम्मानजनक जीवन जीने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करे।

इस आदेश के साथ ही कोर्ट ने कहा कि आपसी सहमति के बाद भी पति को भरण-पोषण के लिए भत्ता देना होगा। हाईकोर्ट ने इस मामले में फैमिली कोर्ट के आदेश को सही ठहराते हुए पति की याचिका को खारिज कर दी है।

पीड़िता ने लगाई थी याचिका

दरअसल, मुंगेली जिले के एक युवक और युवती की शादी 12 जून 2020 को हुई थी। कुछ ही समय बाद उनके बीच विवाद शुरू हो गया। जिसके बाद महिला ने आरोप लगाया कि उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जा रहा है और घर से निकाल दिया गया है।

27 जून 2023 को महिला ने मुंगेली के फैमिली कोर्ट में 15,000 प्रतिमाह भरण-पोषण की मांग करते हुए परिवाद दायर की। उसने बताया कि उसका पति ट्रक ड्राइवर है और खेती से भी सालाना दो लाख रुपए की कमाई होती है।

प्रतिमाह 3000 गुजारा भत्ता देने फैमिली कोर्ट का आदेश

युवक ने कोर्ट में दावा किया कि पत्नी बिना कारण ससुराल छोड़ चुकी है। जिसके बाद दोनों का आपसी सहमति से तलाक 20 फरवरी 2023 को हो चुका है। इसलिए वह किसी भी तरह से भत्ता देने का हकदार नहीं है।

दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैमिली कोर्ट ने अक्टूबर 2023 में महिला को प्रतिमाह 3,000 रुपए भरण-पोषण देने का आदेश दिया।

फैमिली कोर्ट के आदेश को दी चुनौती, याचिका खारिज

युवक ने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि महिला ने दूसरी शादी कर ली है और अब भत्ते की हकदार नहीं है।

इसके समर्थन में प्रकाश ने एक कथित पंचनामा और कवरिंग लेटर दाखिल किया, लेकिन हाईकोर्ट ने उसे कानूनी रूप से अप्रासंगिक बताया, क्योंकि वह अभिप्रमाणित नहीं है। जस्टिस अग्रवाल ने कहा कि, तलाकशुदा पत्नी, जब तक वह पुनर्विवाहित नहीं हो जाती, वह भरण-पोषण की हकदार होती है।



Source link