छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है। अब प्रदेश औषधीय धान उगाने की ओर भी बढ़ रहा है। यहां बीमारियों के खिलाफ एक ‘नेचुरल बूस्टर’ भी तैयार हो रहा है। इनमें कैंसर, शुगर-डायबिटीज, डायरिया और कुपोषण से लड़ने अलग-अलग धान उगाए जा रहे हैं।
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इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की रिसर्च के अनुसार, ‘संजीवनी’ चावल कैंसर मरीजों के लिए इम्यूनिटी बूस्टर है। इसके अलावा मधुराज–55 किस्म डायबिटीज यानी शुगर पेशेंट्स के लिए फायदेमंद है। पड़ोसी राज्यों सहित चाइना और अफ्रीका तक चावल की डिमांड है।
वहीं, ‘छत्तीसगढ़ जिंक राइस–2’ बच्चों में कुपोषण को दूर करने और डायरिया जैसी बीमारियों से जल्दी रिकवरी में मददगार है। धान की इन किस्मों ने प्रदेश की कृषि को औषधीय कृषि में तब्दील कर रहा है। विश्वविद्यालय के पास धान के 23 हजार 250 किस्में हैं। विस्तार से पढ़िए इस रिपोर्ट में …

चावलों की मांग देश के अलावा विदेशों में भी बढ़ी- वैज्ञानिक डॉ. अभिनव साव
कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. अभिनव साव ने बताया कि हमने धान की जो किस्म तैयार की है, उनमें जीरा फूल, दुबराज, बादशाह भोग सहित कुछ अन्य प्रीमियम क्वालिटी के सुगंधित चावलों की मांग देश के अलग–अलग राज्यों के अलावा विदेशों में बढ़ी है।
छत्तीसगढ़ को धान की किस्मों में जीआई टैग मिलने के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमारे चावलों की पूछ-परख बढ़ी है। कृषि विश्वविद्यालय में तैयार की गई किस्में कैंसर और कुपोषण जैसी गंभीर बीमारियों से जल्द रिकवर करने का काम कर रही है। चावल को बाजार या ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट से खरीद सकते हैं।

अब पढ़िए किस तरह की बीमारियों से निपटने में चावल मददगार ?
कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने बताया, कि विवि में तैयार संजीवनी किस्म कैंसर जैसी बीमारी में इम्यूनिटी बूस्टर का काम करता है। इस किस्म को खाने से कैंसर पीड़ित मरीज की जल्द रिकवरी होती है।
इसी तरह से छत्तीसगढ़ जिंक राइस–2 किस्म छोटे बच्चों के कुपोषण को दूर करने के काम आता है। बच्चों को डायरिया जैसी बीमारी से जल्दी रिकवरी मिलती है। वहीं छत्तीसगढ़ मधुराज–55 शुगर पेशेंट के लिए मददगार है। शुगर पेशेंट की जल्द रिकवरी होती है।

छत्तीसगढ़ जिंक राइस-1 के बारे में जानिए
छत्तीसगढ़ जिंक राइस-1 की फसल 110-115 दिन में तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 40-50 क्विंटल उत्पादन होता है। इस किस्म में प्रोटीन, जिंक और आयरन की भरपूर मात्रा मौजूद है। इस किस्म की खेती खरीफ और रबी दोनों समय की जा सकती है।

छत्तीसगढ़ जिंक राइस-1 धान प्रति हेक्टेयर 40-50 क्विंटल उत्पादन होता है।
बादशाहभोग सिलेक्शन–1 के बारे में जानिए
बादशाहभोग सिलेक्शन–1 की फसल 140-145 दिन में फसल तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 35-40 क्विंटल उत्पादन होता है। बादशाह भोग का अखिल भारतीय धान फसल सुधार परियोजना के तहत भारत में 77 जगहों पर परीक्षण किया गया।

बादशाह भोग सिलेक्शन–1 की फसल 140-145 दिन में तैयार हो जाती है।
तरुण भोग सिलेक्शन–1 की फसल 140 दिन में तैयार
तरुण भोग सिलेक्शन–1 की फसल 140-145 दिन में तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 35-40 क्विंटल उत्पादन होता है। यह किस्म धान का भूरा धब्बा एवं पत्ती झुलसन रोग के लिए सहनशील है।इस किस्म में साबुत चावल का प्रतिशत 68 प्रतिशत है। एमाइलेज 26 प्रतिशत है। इसका दाना छोटा, मोटा और सुगंधित होता है।

दुबराज सिलेक्शन–1 की फसल भी 140-145 दिन में फसल तैयार हो जाती है।
दुबराज सिलेक्शन–1 के बारे में जानिए
दुबराज सिलेक्शन–1 की फसल 140-145 दिन में फसल तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 35-42 क्विंटल उत्पादन होता है। इसके पौधों की ऊंचाई लगभग 150 सेमी होती है। साल 2016 में ये किस्म वैज्ञानिकों ने तैयार की थी।

विष्णुभोग सिलेक्श-1 को 2016 में वैज्ञानिकों ने तैयार की थी।
विष्णुभोग सिलेक्शन-1 के बारे में जानिए
विष्णुभोग सिलेक्शन-1 की फसल 140-145 दिन में फसल तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 35-402 क्विंटल उत्पादन होता है। वैज्ञानिकों ने इस किस्म को 2016 में तैयार की थी।

छत्तीसगढ़ मधुराज-55
छत्तीसगढ़ मधुराज-55 मधुमेह पेशेंट के लिए फायदेमंद
छत्तीसगढ़ मधुराज-55 की फसल 130-135 दिन में तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 40-45 क्विंटल उत्पादन होता है। ये धान की एक ऐसी किस्म है, जिसमें शर्करा की मात्रा कम होती है। यह मधुमेह पेशेंट के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है।

छत्तीसगढ़ जिंक राइस-2
छत्तीसगढ़ जिंक राइस-2 के बारे में जानिए
छत्तीसगढ़ जिंक राइस-2 की फसल 130-135 दिन में तैयार हो जाती है। उत्पादन 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इस किस्म का चावल कुपोषण को दूर करता है।

जिंको राइस एमएस
जिंको राइस एमएस कुपोषण से लड़ने में मददगार
जिंको राइस एमएस की फसल 130-135 दिन में तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 55-60 क्विंटल उत्पादन होता है। खरीफ में वर्षा और सिंचित परिस्थितियों के लिए यह अगेती और मध्यम बुआई के लिए अनुकूल किस्म है।
छत्तीसगढ़ के अलावा पश्चिम बंगाल और ओडिशा तक इसकी डिमांड है। वैज्ञानिकों के अनुसार कुपोषण से लड़ने में यह किस्म मददगार है।

ट्राम्बे छत्तीसगढ़ दुबराज म्यूटेंट-1
ट्राम्बे छत्तीसगढ़ दुबराज म्यूटेंट-1 (TCDM-1) के बारे में जानिए
ट्राम्बे छत्तीसगढ़ दुबराज म्यूटेंट-1 (TCDM-1) की फसल 130-135 दिन में तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 45-50 क्विंटल उत्पादन होता है। भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) और इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़ के सहयोग से विकसित की गई है। इसके पौधों की ऊंचाई लगभग 90-95 सेमी होती है।

छत्तीसगढ़ देवभोग
छत्तीसगढ़ देवभोग फसल के बारे में जानिए
छत्तीसगढ़ देवभोग का फसल 135-140 दिन में तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 45-50 क्विंटल उत्पादन होता है। ब्राऊन स्पॉट, शीथरॉट और तनाछेदक जैसे रोगों के प्रति सहनशील है। इसकी औसत उपज 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। एमिलोज कंटेंट 24.5 प्रतिशत है।

प्रोटेजिन
प्रोटेजिन फसल के बारे में जानिए
प्रोटेजिन की फसल 124-128 दिन में तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 45-50 क्विंटल उत्पादन होता है। इसमें प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है। इसको खाने से रोग प्रतिरोधक क्षमता उपभोक्ता की बढ़ती है।

छत्तीसगढ़ संकर धान-2
छत्तीसगढ़ संकर धान-2
छत्तीसगढ़ संकर धान-2 की फसल 120-125 दिन में तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 55-60 क्विंटल उत्पादन होता है। यह संकरित चावल की किस्म है, जिसे अधिक उपज और जल दक्षता के लिए दो अलग-अलग मूलवंशों से विकसित किया गया है।
यह किस्म गैर-बासमती है और औद्योगिक रूप से खेती करने वाले किसानों के लिए उपयुक्त है।

छत्तीसगढ़ धान 1919
छत्तीसगढ़ धान 1919 के बारे में जानिए
छत्तीसगढ़ धान 1919 किस्म के दाना मध्यम पतला है। पकने की अवधि 130- 135 दिन है। इस किस्म में 60 प्रतिशत दाना निकलता है। एमाइलेज की मात्रा 21.73 प्रतिशत पाया जाता है। उपज क्षमता 55-60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

छत्तीसगढ़ तेजस्वी धान
छत्तीसगढ़ तेजस्वी धान के बारे में जानिए
कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एंथर कल्चर के जरिए विकसित प्रथम डबल हेल्पालाइड किस्म है। पकने की अवधि 125- 130 दिन है। इसके पौधे की ऊंचाई 110 से 115 सेमी है, जो कि मध्यम पता दाने वाली किस्म है।
यह किस्म झुलसा रोग, शील गलन, नेक ब्लास्ट के लिए मध्यम प्रतिरोधक है। उपज क्षमता 55 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

संजीवनी
अब जानिए कैंसर से लड़ने वाले चावल के बारे में
संजीवनी की फसल 135-140 दिन में तैयार हो जाती है। उत्पादन 35-38 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह किस्म शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और कैंसर कोशिकाओं को रोकने में उपयोगी पाई गई है।
इसे केवल 10 दिन इस्तेमाल करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि देखी गई है। इसे इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर और भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र मुंबई के सहयोग से तैयार किया गया है।

23 हजार 250 किस्में हमारे पास- साइंटिस्ट डॉ. साव
दैनिक भास्कर से चर्चा के दौरान कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. अभिनव साव ने बताया, कि विश्वविद्यालय में मौजूद अक्ति जैव विविधता संग्रहालय में 23 हजार 500 किस्मों को रखा गया है। इन किस्मों को रिसर्च करके तैयार किया गया है।
